झाबुआ। 5 नवंबर झाबुआ।
राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद् द्वाारा मा. जिला अधिकारी मा.राष्ट्रीपति के नाम ज्ञापन 5 नवबंर को दिया गया।

जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों में निवास करने वाले आदिवसीयों की संस्कृति और पहचान समाप्त करने के लिए एवं विकास के नाम पर जल, जगंल और जमीन से बेदखल करने के लिए हो रहे असंवैधानिक कुकृत्यों पर रोक लगाकर संवैधानिक व्यवस्था क अनुसार अधिकार सुनिश्चित करने के संदर्भ में ज्ञापन दिया गया ।

: विडंबना यह है कि जिन तमाम विदेशी आक्रमणकारियों से लढ़ते हुए गुलाम भारत में आदिवासी महापुरुषों ने जल, जंगल, जमीन और अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए जान की वाजी लगाई थी, लेकिन तथाकथित 1947 को मिली आजादी और 1950 में मिले अधिकारों के बावजूद विकास के नाम पर औद्योगीकरण के माध्यम से, बड़े-बड़े बांध बनाकर, प्राकृतिक संसाधनों के लिए उत्खनन करके आदिवासियों को उनके जल, जंगल और जमीनों से विस्थापित किया गया और उनका
पुनर्वास करने का कोई ईमानदार प्रयास नहीं हुआ। जबकि संविधान में अनुच्छेद 244 के तहत अनुसूची 5 और 6 में उल्लखे है कि इन क्षेत्रों में केंद्रीय या राज्य सरकार को दखल देने का अधिकार नहीं होगा। बल्कि जनजाति मंत्रणापरिषद की स्थापना कर वहीं विकास की सारी भावनाओं को जमीन पर उतारने का काम करें और उसका नियंत्रण प्रदेश में राज्यपाल और देश में राष्ट्रपति के अधिन होगा। लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के विराध में लगातार राज्य एवं केद्रं को सरकार कानून बनाकर राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत किया और अंसवैंधानिक काननू को स्वीकार किया गया, इसलिए देशभर के लाखों जनजातियों के सामाजिक सगंठनों में आक्रोश होने से उन्हें आन्दोलन करना पड़ रहा है और हम सभी संगठनों ने अपनी बुनियादी और जायज मांगों को एकत्रित कर आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए यह कदम उठाया है। हमारी निम्नलिखित मांगें हैं, कृपया आप संविधान के दायरे में रह कर हमारी मांगों पर विचार कर उचित कार्यवाही करे।
झाबुआ से अल्बर्ट मंडोरिया चीफ ब्यूरो की रिपोर्ट