7 जनवरी 2021
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री कमलनाथ की पत्रकार वार्ता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) तथा उसकी राजनीतिक शाखा भारतीय जनसंघ व भाजपा सदैव से बाजार अर्थव्यवस्था (Market Economy) के पक्ष में रहते हुए पॅंूजीवादी अर्थव्यवस्था की हिमायती रही है जबकि कांग्रेस पार्टी (समाजवादी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी) सदैव से ही समाजवादी अर्थव्यवस्था व विचारधारा की समर्थक रही
है ।
आर.एस.एस. व भारतीय जनसंघ ने आजादी के बाद से ही बड़े सार्वजनिक उपक्रमों (PSU) व बड़े बांधों का विरोध किया। इन लोगों ने स्टील अर्थारिटी आॅफ इंडिया SAIL) भारत हेवी इलेक्ट्रिल लिमि. (BHEL) नेशनल थर्मल पाॅवर काॅर्पोरेशन
(NTPC) तेल एवं प्राकृतिक गैस काॅर्पोरेशन (BHEL) इंडियन आॅल कार्पोरेशन (NTPC) जैसे सार्वजनिक उपक्रमों का विरोध किया। वर्ष 2014 में पहली बार (RSS) व भाजपा को अपना एजेण्डा लागू करने के लिए स्पष्ट बहुमत मिला ।
मोदी जी ने सत्ता मिलते ही सबसे पहले भारतीय खाद्य निगम (FCI) को अपना लक्ष्य बनाया जिस पर किसानों से MSP पर अनाज खरीदकर गरीबों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से सस्ता अनाज उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी रही है । मोदी जी ने शांता कुमार कमेटी का गठन किया जिसकी दो अनुशंसाएॅं महत्वपूर्ण हैं ।
(1) पी.डी.एस. के माध्यम से गरीबों को सस्ता अनाज देने के बजाय उनके
खाते में सीधे पैसा जमा करा दिया जाये ।
(2) केन्द्र सरकार केवल ‘डेफेसिट‘ यानि कि कम उत्पादन होने वाले राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद करे और ‘सरप्लस‘ यानि की अधिक उत्पादन होने वाले राज्यों में राज्य सरकार खरीद करे ।
‘डेफेसिट‘ राज्यों में ओडिशा, बंगाल तथा उत्तर पूर्वी राज्य आदि आते हैं और
‘सरप्लस‘ राज्यों में पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश,
तेलंगाना, तमिलनाडु आदि राज्य आते हैं ।
यदि शांताकुमार कमेटी की गरीबों को अनाज के बदले केश देने की सिफारिश मान ली जाए तो सरकार को अनाज खरीदने की क्या आवश्यकता है? यानि कि MSP पर आवश्यकता से अधिक अनाज खरीदने की आवश्यकता नहीं है । इससे केन्द्र सरकार को ‘डेफेसिट‘ राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदने के लिए अधिक राशि की आवश्यकता नहीं रहेगी और ‘सरप्लस‘ राज्य में राज्य सरकारें खरीद करेगी ।
हमारी मांग है MSP पर कृषि उपज अनिवार्य रूप से खरीदने के लिए कानून लाया जाये ।
देश में अधिकतर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलता है तथा इन 3 कानूनों को लागू करने से जो भी संभावनाएं है, वह भी समाप्त हो जायेगी ।
भारत का कृषि उत्पाद का कारोबार लगभग रू. 15-18 लाख करोड़ का है । जिस पर बड़े काॅरपोरेट व मल्टीनेशनल कंपनियों की नज़र रही है । इन कंपनियों को इसमें प्रवेश करने के लिए ही ये तीन कानून लाए गए है ।
(1़) कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) कानून 2020
संविधान में कृषि क्षेत्र पूरी तरह से राज्य का विषय है, जिसके द्वारा हर राज्य ने अपना मंडी कानून बनाया हुआ है । अभी किसान को अपना उत्पाद मंडी के बाहर अपने प्रदेश में, प्रदेश के बाहर व विदेश में बेचने का अधिकार है ।
किसी भी व्यापारी को मंडी या मंडी क्षेत्र में कृषि उत्पाद खरीदना है तो उसे मंडी का लायसेंस लेना अनिवार्य है । बड़े उद्योगपतियों को हर मंडी में लायसेंस लेना और उसके नियमों का पालन करना सरल नहीं था, इसलिए केन्द्र सरकार ने नए कानून के तहत कार्पोरेट के लिए सारी बाधाएं खत्म करके उनके लिए खुले व्यापार का रास्ता साफ कर दिया है । नया कानून किसानों के लिए गहरे संकटों का कारण बन गया है । मंडी में किसानों के प्रतिनिधि के तौर पर मंडी अध्यक्ष और मंडी सचिव व्यापारियों पर रेगुलेटर का काम करते रहे है लेकिन नया कानून मंडी के बाहर व्यापारियों के लिए किसी भी रेगुलेटर का प्रावधान नहीं करता । इससे व्यापारी मनमानी करेंगे । कृषि उत्पाद के बाजार में कारपोरेट घरानों के एकाधिकार स्थापित होने से छोटे व्यापारियों का व्यापार एवं व्यापारिक प्रतिस्पर्धा समाप्त हो जाएगी । परिणामस्वरूप बड़े व्यापारी मनमानी करेंगे । मूल्य की ग्यारंटी नहीं होने से किसानों
से मनमाने भाव पर उपज खरीदी जाएगी जिसमें न पारदर्शिता होगी और न ही सुरक्षित भुगतान की समुचित व्यवस्था ।
अब कोई भी व्यक्ति जिसके पास आयकर विभाग द्वारा जारी पेन कार्ड व आधार कार्ड है, वह भारत की किसी भी मंडी में कृषि उत्पाद को खरीद सकता है । कोई भी व्यापारी नई मंडी खोल सकता है ।
ईट्रेडिंग के माध्यम से आॅनलाइन ट्रेडिंग भी कर सकता है । नए कानून में प्रावधान है कि व्यापारी कृषि उपज को आॅनलाइन खरीद कर डिलीवरी के 3 दिन में भुगतान करे । यदि किसान को 3 दिन में भुगतान नहीं मिला तो वह अनुविभागीय दंडाधिकारी (SDM) के समक्ष दावा प्रस्तुत करेगा । किन्तु नए कानून के मुताबिक किसान अदालत में नहीं जा सकता ।
एस.डी.एम. दोनों पक्षों को बुलाकर समझौता कराएगा और समझौता नहीं होने पर किसान कलेक्टर के पास अपील करेगा । वहाॅं भी यदि समझौता नहीं होता है तो किसान दिल्ली में केन्द्र सरकार के कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव के पास अपील करेगा । यदि वहाॅं भी निराकरण नहीं होता तो केन्द्र सरकार द्वारा मनोनीत (नियामक प्राधिकरण) (Regulatory Authority) के समक्ष अपील करेगा और उसका निर्णय अंतिम होगा । इस नियम से किसान को दर दर की ठोकर खानी पड़ेगी एवं अपील करने में किसान का पैसा बहुत खर्च होगा व आर्थिक नुकसान होगा । कोई भी अधिकारी, किसान के साथ गैर कानूनी व्यवहार करता है तो किसान ना तो पुलिस में शिकायत कर सकता है ना अदालत जा सकता है ।
भाजपा कहती है कि नया कानून किसान के पक्ष में है ।
(2) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) अनुबंध कानून 2020
इस कानून में कांट्रेक्ट फाॅर्मिंग यानि ठेके की खेती का प्रावधान है । अर्थात कोई भी किसान किसी भी बड़ी कम्पनी के साथ अपनी ज़मीन पर उसकी बताई हुई फसल का अनुबंध कर सकता है । बीज, दवाई, खाद कम्पनी देगी और एक निश्चित भाव में उसका उत्पाद खरीदेगी । अनुबंध की शर्ते क्या होंगी यह किसान व कम्पनी के बीच में तय होगी ।
यदि फसल आने पर भाव कम हो गया तो कम्पनी को अनुबंधित भाव में ही खरीदना पड़ेगा और यदि भाव अधिक हो गया तो किसान को अनुबंधित भाव में ही बेचना पड़ेगा ।
अनुबंध में यदि विवाद की स्थिति बनती है तो किसान ना तो पुलिस में शिकायत कर सकेगा और ना ही अदालत जा सकेगा। उसे एस.डी.एम. के पास ही जाना पड़ेगा ।
महात्मा गांधी को चम्पारण में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नील की खेती करने वाले शोषित किसानों के लिए आंदोलन करना पड़ा था । तब किसान को अदालत में जाने पर प्रतिबंध नहीं था लेकिन नए आज़ाद भारत में अब नए कानून के जरिये किसानों के लिए अदालत के रास्ते बंद कर दिए गए है ।
(3) आवश्यक वस्तु संशोधन कानून-2020
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण हेतु उनके पक्ष में आवश्यक वस्तु अधिनियम (Essential Commodities Act) लाए थे ताकि बड़े व्यापारी जमाखोरी व कालाबाजारी ना कर सके ।
इस कानून के अंतर्गत व्यापारी निश्चित मात्रा से अधिक माल स्टाॅक नहीं कर सकता था और कालाबाजारी करने पर दण्डित किया जा सकता था ।
अब नए कानून में व्यापारी जितना चाहे उतना माल स्टाॅक कर सकता है और जब चाहे तब मनमाने भाव में बेच सकता है । यही तो मार्केट इकोनाॅमी या पूंजीवाद है जो पूंजीपति के पक्ष में और गरीब, किसान, मज़दूर और उपभोक्ता के खिलाफ
है ।
किसानों की मांग सही है । कांग्रेस पार्टी मांग करती है किः
- किसानों को MSP देने के लिए कानून लाया जाये
एवं
- तीनों कानून वापस लो ।
किसान आंदोलन के समर्थन में प्रदेश कांग्रेस कमेटी
द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रम
- 7 जनवरी से 15 जनवरी तक विभिन्न जिलों में जिला/ब्लाक कांग्रेस कमेटियों द्वारा किसी एक दिन धरना/प्रदर्शन/बैठक ।
- 15 जनवरी को दोपहर 12.00 बजे से 2 बजे तक किसानों द्वारा चक्काजाम
(यह चक्काजाम विभिन्न क्षेत्रों में खेतों के सामने या गांव के सामने, या विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों एवं अन्य किसी भी सड़क पर होगा।) (चक्काजाम की शुरूवात में हार्न-शंखनाद होगा जो 2 मिनट तक चलेगा और दोपहर 2 बजे चक्काजाम की समाप्ति पर हार्न बजाना या शंखनाद 2 मिनट तक) - 20 जनवरी को मुरैना में किसान महापंचायत
- 23 जनवरी को 2021 को किसानों द्वारा भोपाल में राजभवन का घेराव किया जाएगा !
(शांतिपूर्ण प्रदर्शन) पत्रकारवार्ता में श्री दिग्विजय सिंह, श्री सुरेश पचौरी,श्री अरुण यादव, श्री रामनिवास रावत,श्री सज्जन सिंह वर्मा, श्री पी सी शर्मा, श्री जीतू पटवारी, श्री चंद्र प्रभाष शेखर, श्री प्रकाश जैन, श्रीमती मांडवी चौहान, श्री विक्रांत भूरिया, श्री भूपेंद्र गुप्ता ,श्री नरेन्द्र सलूजा, श्री रवि सक्सेना, श्रीमती विभा पटेल उपस्थित थे ! AM-LIVE NEWS